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भारत में हिन्दू धर्म का विशेष पर्व दीपावली अथवा दिवाली कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाने वाला त्यौहार है. लक्ष्मी जी की पूजा करके उनसे धन-धान्य एवं एश्वर्य की कामना की जाती है. पांच दिन तक चलने वाले इस पर्व में मुख्य रूप से नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भइया दूज शामिल हैं.
यदि शास्त्रों की मानें तो उनमे लिखा है कि इस दिन लक्ष्मी हमारे घर में प्रवेश करती है, लक्ष्मी की प्रसन्नता हेतु विभिन्न उपायों एवं कृत्यों के बारे में भी शास्त्रों में बताया गया है. कभी-कभी कुछ काम ऐसे भी हैं जिन्हें लक्ष्मी जी को प्रसन्न रखने के लिए नहीं करना चाहिए. आइये हम आपको बताते हैं कुछ इसी प्रकार की उपयोगी जानकारी.
दीपावली का यदि संधि विच्छेद करे तो दीप + आवाली दीप का अर्थ दीपक से होता है . और आवली का अर्थ पंक्ति से. दिवाली के दिन हम अपने घरो में दीपकों की पंक्ति से सजाते है. इसलिए इसे दीपावली कहा जाता है .
धनतेरस जिसे हम धन त्रयोदसी भी कहते है. आज के दिन कुबरे भगवान् का पूजन करना चाहिए. भगवान् कुबेर की स्थापना करे, फूल , फल, धूप, मिष्ठान आदि सामग्री लेकर किसी ब्राहमण द्वारा पूजन करे . भगवान् कुबेर की प्राथना करे क्योकि भगवान् कुबेर की पूजा से ही धन की प्राप्ति होती है,
धनतेरस के दिन हमें कोई सुवस्तु अपने घर लानी चाहिए. परन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की वस्तु लोहे की न हो . वैसे तो कहा जाता है कि स्टील भी लोहा सामान होता है. परन्तु धन के आभाव में हम यदि चावल भी खरीद कर भगवान् कुबेर पर अर्पित करते है तो वह भी भगवान् स्वीकार कर लेते है. उसके उपरान्त नरक चतुर्दशी आती है.
इस दिन पूजा करने से नरक गमन नहीं करना पड़ता इसलिए आवश्यक है कि दिवाली से ठीक पहले मिलने वाले इस अवसर का सही लाभ उठाया जाये. इस दिन 5 घी के दीपक बनाकर पूजा करनी चाहिए.
एक दीपक सबसे पहले उस स्थान पर रखें जहां भगवान की मूर्ति रखी है, दूसरा दीपक तुलसा जी के पास रखें, तीसरा दीपक उस स्थान पर रखें जहां घर के सदस्य जल का उपयोग करते हैं. इसके अतिरिक्त एक दीपक किसी मंदिर में रखने से भगवान की कृपा बनी रहती है तथा एक दीपक घर के दरवाजे पर रख देना उत्तम होता है. इस प्रकार कुल पांच दीपक जलाने तथा उन्हें विधिवत रखने से पूजा अर्चना का लाभ प्राप्त हो सकता है.
जुआ न खेलें: कुछ लोग दिवाली पर जुआ खेलते हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार जुए में कलयुग का वास माना गया है. ऐसा माना जाता है कि जुआ खेलने से हमारे भाग्य में जो लक्ष्मी हमारे प्रारब्ध में लिखी गयी है वह भी धीरे- धीरे नष्ट हो जाती है. तथा हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होगा.
लक्ष्मी पूजन के लिए आवश्यक है कि आप मंदिर में उनकी पसंदीदा वस्तुएं एकत्रित कर लें एवं पूजा करें. ध्यान रखें कि वस्त्रों में लक्ष्मी जी को लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र अधिक पसंद है. पुष्पों में कमल एवं गुलाब इनके प्रिय माने जाते हैं. हवन के समय फलों में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े का उपयोग करें. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि लक्ष्मीजी व गणेशजी की मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम की ओर रहे साथ ही यह भी ध्यान रखें कि लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर हों. दीवाली के दिन इस मन्त्र का जाप करें: ॐ महालक्ष्मी नमः॥
दिवाली के दिन सुबह प्रातः काल गादी पूजन होता है जिसे गद्दियों पर किया जाता है. इस वर्ष इसका समय 8 बजकर 12 मिनट से 9 बजकर 35 मिनट तक है. यदि इस समय आप पूजा न कर पायें तो 9 बजकर 35 मिनट से लेकर 12 बजकर 21 मिनट तक पूजन किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त अविजित मूहुर्त अर्थात् 11 बजकर 57 मिनट से लेकर 12 बजकर 49 मिनट तक है, इस समय भी आप पूजा कर सकते हैं.
जो व्यापारी अपनी दुकानों, फैक्ट्री अथवा व्यापारिक स्थल पर हैं और वहीँ पूजा करना चाहते हैं तो उनके लिए 11 बजकर 44 मिनट से 3 बजकर 07 मिनट तक शुभ मुहूर्त है. इस समय पर पूजा करने से उन्हें धान्य लाभ होने की अधिक संभावना है.
इसके अतिरिक्त सांध्य कालीन पूजन का समय 5 बजकर 53 मिनट से लेकर 8 बजकर 17 मिनट तक शुभ है. स्थिर लगन का पूजन 6 बजकर 53 मिनट से 8 बजकर 49 मिनट तक है.
सभी मूर्तियों को एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर रखें. इसमें एक ओर कलश तथा एक ओर एक मुट्ठी चावल से नवग्रह के प्रतीक के रूप में नौ ढेर बनायें जिस ओर गणेश जी की मूर्ति है उस ओर सोलह ढेरी रखें.
पूजा आरंभ करने से पहले शुद्धिकरण करें, इसके लिए थोड़ा जल लेकर उसे सभी मूर्तियों पर छिडकें साथ में मंत्र – ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा – पढ़ें. इसके बाद जहां आप बैठें हैं उसे भी जल छिड़ककर पवित्र कर लें तथा पूजन आरंभ करें.
इसके अतिरिक्त रात्रि में होने वाले विशेष पूजन का समय रात्रि को 1 बजकर 38 मिनट से लेकर 3 बजकर 7 मिनट तक है. इस दौरान महालक्ष्मी के श्री शुक्त, कनक धरा स्त्रोत जाप करना लाभप्रद होगा. इसके आलावा गोपाल शहस्त्र नाम का भी पाठ कर सकते है . अगर आप संस्कृत नही सही उचारण नही कर सकते हे तो केवल ॐ महालक्ष्मी नमः॥ इस मंत्र से हवन करे. इस हवं में केवल बेलपत्री की सविधा का उपयोग बेहतरीन माना गया है, सविधा का अर्थ (बेलपत्री की लकड़ी) और बेलगिरी (बेल के फल का चूरा ) तथा इसमें घी और सक्कर मिला कर उपयोग करे. इस समय को सिंह लग्न के नाम से भी जाना जाता है.
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भारत में हिन्दू धर्म का विशेष पर्व दीपावली अथवा दिवाली कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाने वाला त्यौहार है. लक्ष्मी जी की पूजा करके उनसे धन-धान्य एवं एश्वर्य की कामना की जाती है. पांच दिन तक चलने वाले इस पर्व में मुख्य रूप से नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भइया दूज शामिल हैं.
यदि शास्त्रों की मानें तो उनमे लिखा है कि इस दिन लक्ष्मी हमारे घर में प्रवेश करती है, लक्ष्मी की प्रसन्नता हेतु विभिन्न उपायों एवं कृत्यों के बारे में भी शास्त्रों में बताया गया है. कभी-कभी कुछ काम ऐसे भी हैं जिन्हें लक्ष्मी जी को प्रसन्न रखने के लिए नहीं करना चाहिए. आइये हम आपको बताते हैं कुछ इसी प्रकार की उपयोगी जानकारी.
दीपावली का यदि संधि विच्छेद करे तो दीप + आवाली दीप का अर्थ दीपक से होता है . और आवली का अर्थ पंक्ति से. दिवाली के दिन हम अपने घरो में दीपकों की पंक्ति से सजाते है. इसलिए इसे दीपावली कहा जाता है .
धनतेरस जिसे हम धन त्रयोदसी भी कहते है. आज के दिन कुबरे भगवान् का पूजन करना चाहिए. भगवान् कुबेर की स्थापना करे, फूल , फल, धूप, मिष्ठान आदि सामग्री लेकर किसी ब्राहमण द्वारा पूजन करे . भगवान् कुबेर की प्राथना करे क्योकि भगवान् कुबेर की पूजा से ही धन की प्राप्ति होती है,
धनतेरस के दिन हमें कोई सुवस्तु अपने घर लानी चाहिए. परन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की वस्तु लोहे की न हो . वैसे तो कहा जाता है कि स्टील भी लोहा सामान होता है. परन्तु धन के आभाव में हम यदि चावल भी खरीद कर भगवान् कुबेर पर अर्पित करते है तो वह भी भगवान् स्वीकार कर लेते है. उसके उपरान्त नरक चतुर्दशी आती है.
इस दिन पूजा करने से नरक गमन नहीं करना पड़ता इसलिए आवश्यक है कि दिवाली से ठीक पहले मिलने वाले इस अवसर का सही लाभ उठाया जाये. इस दिन 5 घी के दीपक बनाकर पूजा करनी चाहिए.
एक दीपक सबसे पहले उस स्थान पर रखें जहां भगवान की मूर्ति रखी है, दूसरा दीपक तुलसा जी के पास रखें, तीसरा दीपक उस स्थान पर रखें जहां घर के सदस्य जल का उपयोग करते हैं. इसके अतिरिक्त एक दीपक किसी मंदिर में रखने से भगवान की कृपा बनी रहती है तथा एक दीपक घर के दरवाजे पर रख देना उत्तम होता है. इस प्रकार कुल पांच दीपक जलाने तथा उन्हें विधिवत रखने से पूजा अर्चना का लाभ प्राप्त हो सकता है.
जुआ न खेलें: कुछ लोग दिवाली पर जुआ खेलते हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार जुए में कलयुग का वास माना गया है. ऐसा माना जाता है कि जुआ खेलने से हमारे भाग्य में जो लक्ष्मी हमारे प्रारब्ध में लिखी गयी है वह भी धीरे- धीरे नष्ट हो जाती है. तथा हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होगा.
लक्ष्मी पूजन के लिए आवश्यक है कि आप मंदिर में उनकी पसंदीदा वस्तुएं एकत्रित कर लें एवं पूजा करें. ध्यान रखें कि वस्त्रों में लक्ष्मी जी को लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र अधिक पसंद है. पुष्पों में कमल एवं गुलाब इनके प्रिय माने जाते हैं. हवन के समय फलों में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े का उपयोग करें. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि लक्ष्मीजी व गणेशजी की मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम की ओर रहे साथ ही यह भी ध्यान रखें कि लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर हों. दीवाली के दिन इस मन्त्र का जाप करें: ॐ महालक्ष्मी नमः॥
दिवाली के दिन सुबह प्रातः काल गादी पूजन होता है जिसे गद्दियों पर किया जाता है. इस वर्ष इसका समय 8 बजकर 12 मिनट से 9 बजकर 35 मिनट तक है. यदि इस समय आप पूजा न कर पायें तो 9 बजकर 35 मिनट से लेकर 12 बजकर 21 मिनट तक पूजन किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त अविजित मूहुर्त अर्थात् 11 बजकर 57 मिनट से लेकर 12 बजकर 49 मिनट तक है, इस समय भी आप पूजा कर सकते हैं.
जो व्यापारी अपनी दुकानों, फैक्ट्री अथवा व्यापारिक स्थल पर हैं और वहीँ पूजा करना चाहते हैं तो उनके लिए 11 बजकर 44 मिनट से 3 बजकर 07 मिनट तक शुभ मुहूर्त है. इस समय पर पूजा करने से उन्हें धान्य लाभ होने की अधिक संभावना है.
इसके अतिरिक्त सांध्य कालीन पूजन का समय 5 बजकर 53 मिनट से लेकर 8 बजकर 17 मिनट तक शुभ है. स्थिर लगन का पूजन 6 बजकर 53 मिनट से 8 बजकर 49 मिनट तक है.
सभी मूर्तियों को एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर रखें. इसमें एक ओर कलश तथा एक ओर एक मुट्ठी चावल से नवग्रह के प्रतीक के रूप में नौ ढेर बनायें जिस ओर गणेश जी की मूर्ति है उस ओर सोलह ढेरी रखें.
पूजा आरंभ करने से पहले शुद्धिकरण करें, इसके लिए थोड़ा जल लेकर उसे सभी मूर्तियों पर छिडकें साथ में मंत्र – ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा – पढ़ें. इसके बाद जहां आप बैठें हैं उसे भी जल छिड़ककर पवित्र कर लें तथा पूजन आरंभ करें.
इसके अतिरिक्त रात्रि में होने वाले विशेष पूजन का समय रात्रि को 1 बजकर 38 मिनट से लेकर 3 बजकर 7 मिनट तक है. इस दौरान महालक्ष्मी के श्री शुक्त, कनक धरा स्त्रोत जाप करना लाभप्रद होगा. इसके आलावा गोपाल शहस्त्र नाम का भी पाठ कर सकते है . अगर आप संस्कृत नही सही उचारण नही कर सकते हे तो केवल ॐ महालक्ष्मी नमः॥ इस मंत्र से हवन करे. इस हवं में केवल बेलपत्री की सविधा का उपयोग बेहतरीन माना गया है, सविधा का अर्थ (बेलपत्री की लकड़ी) और बेलगिरी (बेल के फल का चूरा ) तथा इसमें घी और सक्कर मिला कर उपयोग करे. इस समय को सिंह लग्न के नाम से भी जाना जाता है.
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